विवाहिता मायके में बैठ गई, भरण पोषण मांग रही, अब निम्न आय वर्ग का पति क्या करेगा ?
रायगढ़ भरण पोषण कानून धारा 125 दण्ड प्रक्रिया संहिता, धारा 24 हिन्दु विवाह अधिनियम, घरेलु हिंसा कानून, और दहेज प्रतिषेध अधिनियम के दिनोंदिन हो रहे दुरुपयोग के कारण आज पुरूष विवाह करना ही नहीं चाहता है। परिणाम लिव - इन - रिलेशन और सहदायी जीवन, बिना किसी विवाह के साथ में रहना, और पति पत्नी के सामाजिक दर्जे के स्थान पर मित्रता का दर्जा देना। भारतीय समाज संबंधों में स्थिरता चाहता है। इसके अतिरिक्त विवाह वर्तमान में एक षड़यंत्र बन गया हैं जिसमें 03 माह ससुराल में रहने के बाद नवविवाहिता अदालत में आ जाती हैं और 25 लाख रू0 लेकर तलाक देती हैं फिर दूसरा विवाह करती हैं। इस तरह से महिला 01 करोड़ रूपए का लक्ष्य हासिल कर लेती हैं। कुटुम्ब न्यायालय में इस तरह के मामले अक्सर देखने को मिल जायेंगे।
महिलाओं की मदद करने के लिए वकील सदैव तैयार हैं, जो महिलाओं के कहने पर दहेज प्रताड़ना और यौन उत्पीड़न की कहानी तैयार कर पुलिस में आवेदन पेश कर देंगे और भरण पोषण का मुकदमा तैयार हो गया। वकील केस दायर कर देगा और महिला को भरण पाोषण मिलता रहेगा। तमाम मुकदमों से छुटकारा चाहिए तो कीमत अदा कर दो जो कि 25 लाख से प्रारंभ होती हैं। अन्यथा विवाह करना एक अपराध है जिसका मासिक अर्थदण्ड अदा करते रहो। वकील के पास पुरूष के लिए कोई विशेष समाधान नहीं है। बल्कि वकील के अनुसार पुरूष को अर्थदण्ड राशि, मासिक भरण पोषण अदा करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार रहना है। आम तौर पर यही देखने में आता हैं जैसे कि डाक्टर मरीज से कहता है कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं हैं। जिला न्यायालय में नतीजा भी कुछ इसी तरह से आता है। अच्छा नतीजा तब मिलता हैं जब ठोस एवं विश्वसनीय साक्ष्य पति के पास उपलब्ध है लेकिन नतीजा के लिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ता हैं।
भरण पोषण कानून पर विधि कहती हैं कि एैसी महिला जो कि भरण पोषण करने में अक्षम हैं, पति से भरण पोषण राशि प्राप्त करने की हकदार हैं। अक्षम का क्या अर्थ है? महिला शरीरिक एवं मासिक रूप से तो सक्षम हैं तथा शिक्षित भी हैं। भरण पोषण के मामलों में दाखिल यचिका में अक्सर सवाल यह उठता है कि पढ़ी लिखी महिला अक्षम कैसे है? भारत सरकार अत्मनिर्भर महिला का अभियान चला रहीं हैं, महिला अंतरिक्ष में जा रही हैं, सशत्र सेना में नौकरी कर रहीं हैं, आतंकवादी और नक्सल वादी से लड़ रही हैं तो अक्षम कैसे है? कानून यह नहीं कहता हैं कि महिला मायके में जाकर बैठ जाये और कोई रोजगार पाने का प्रयास ही नहीं करें ? भरण पोषण कानून पर अदालतें कह चुकी हैं कि महिला पति के साथ नहीं रहना चाहती हैं तो अंततः एक सीमा तय होनी चाहिए कि पति कितने वर्षो तक भरण पोषण अदा करता रहेगा, एक सीमा तय होनी चाहिए। अंततः महिला को आत्म निर्भर बनना होगा। परित्यक्ता एवं तलाक शुदा महिला के लिए भारत सरकार एवं राज्य सरकार योजनाएं चलाती हैं, सरकारी नौकरी में आरक्षण देती हैं।
न्यायालय में पुरूष पक्ष अपना बचाव कैसे करेगा ? महिला की व्यक्तिगत आय कुछ भी नहीं है और भरण पोषण 25 हजार रू0 महिने का चाहिए। आय या तो नौकरी या व्यापार या फिर खेती से होती है? महिला की मायका पक्ष के परिवार का कोई भी सदस्य आयकर विवरणी दाखिल नहीं करता है? महिला खाती पीती क्या हैं? महिला का व्यक्तिगत् खर्च क्या हैं? महिला के मायके पक्ष यादि खर्च वहन कर रहा है तो आय का स्रोत क्या है? यह विधि एवं न्याय का प्रश्न हैं जबकि महिला भरण पोषण में 25 हजार रूपए महिना की मांग कर रहीं हैं तब यह प्रश्न उठता हैं?
विधि एवं न्याय का प्रश्न यह भी है कि महिला अक्षम कैसे है? महिला ने सरकारी एवं गैर सरकारी नौकरी हासिल करने का प्रयास क्या किया हैं? विद्वान अधिवक्ता यह सवाल जरूर पूछेगा कि महिला ने स्वयं के भरण पोषण अर्जित करने के अंततः प्रयास क्या किया है, मसलन कितनी कंपनियों में अपनाा बाायो डाटा दिया है। सरकारी नौकरी में कहां कहां आवेदन पत्र दाखिल किए हैं? कल्पना करें / फर्ज करें कि एक महिला भरण पोषण में 10 हजार रूपए मासिक भरण पोषण चाहती है और पति एक कंपनी के अधिकारी को बचाव में पेश कर दे कि वह आवास एवं 15 हजार रूपए मासिक वेतन देने के लिए तैयार हैं। योग्यता केवल महिला को समाचार पत्र पढ़ना आना चाहिए। न्यायालय को पता चल जायेगा कि महिला केवल कानून की प्रक्रिया के जरिए अवैध वसूली का अपराध कर रहीं हैं जो कि भारतीय दण्ड विधान की धारा 384 का अपराध है।
हमारे समाज में पुरूष पक्ष प्रताड़ित हो रहा हैं और महिला के पक्ष में कानून हैं तो बंद दिमााग से बाहर निकल कर सोचने की जरूरत है।
मैं महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ नहीं हूं।
Adv. S. K. Ghosh,
Civil Lines,
RAIGARH.
Mob: 9993786929.