इंडियन दीयों के आगे फीकी पड़ी चीनी झालरों की चमक, दिवाली पर बाजार में बढ़ी मिट्टी के स्वदेशी दीयों की मांग
रोशनी के पर्व दीपावली पर इस बार माटी के दीयों की मांग इतनी ज्यादा है कि कुंभारों को दूसरे राज्यों से दीये मंगाने पड़ रहे हैं। सोशल मीडिया पर चीनी वस्तुओं के लगातार बहिष्कार की अपील के बाद त्योहारों पर जनमानस अपनी परंपरागत वस्तुओं को प्राथमिकता देने लगा है। धारावी स्थित कुम्भार वाड़ा में इस बार मिट्टी के दीये की थोक खरीदारों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है।
दीपावली पर्व के आते ही दुकानें झिलमिलाते चीनी झालरों से सज जाते थे, लेकिन अब चीनी झालरों की जगह लोग माटी के दीयों को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। कुम्भार
वाड़ा में माटी के दीयों के एक थोक खरीदार अमरदेव ने बताया कि ग्राहक अब दीपावली पर्व को लेकर काफी जागरूक दिख रहा है इसलिए वह पुरानी परंपराओं को
सहेजने लगा है।
50 से ज्यादा वैरायटी के दीये
माटी के दीयों की अच्छी मांग को देखते हुए कुम्भारों ने भी डेकोरेटिव दीयों को बाजार में उतारा है जो साधारण दीयों से काफी आकर्षक हैं। सांचे (डाई) पर तैयार 50 से अधिक वैरायटी के तैयार दीपक रंगीन और आकर्षक हैं। रंगीन दीयों की कीमत 50 रुपए से लेकर 1000 रुपए तक है। इसके अलावा मोमबत्ती वाले दीये और अन्य विशेष आइटम भी बनाए गए हैं।
मिट्टी और चिकनी मिट्टी से लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां, हवन कुंड, पेंटिंग्स व अन्य सजावटी सामान भी ग्राहकों को काफी पसंद आ रहे हैं। मिट्टी क्राफ्ट हॉउस के नरोत्तम ने बताया कि गत कुछ वर्षों से मिट्टी के दीयों के मांग में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है।
चाइनीज झालर की डिमांड कम
उन्होंने कहा कि बदलते समय के साथ त्योहारों को मनाने का चलन भी बदला है। पहले दीपावली पर दीयों की खूब डिमांड रहती थी मगर जबसे चाइनीज झालर आ गए दीयों की डिमांड कम हो गई। यह अच्छी बात है कि लोग अब फिर पारंपरिक दीयों को महत्व देने लगे हैं इससे कुम्हारों का पैतृक व्यवसाय कायम रहेगा।
धारावी के इस कुम्भार वाड़ा में दीया बनाने के साथ अन्य बर्तन बनाने का काम साल भर चलता रहता है। इसमें काफी समय लगता है इसलिए अधिकतर सामान गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व कोलकाता से मंगाया जाता है। मुंबई में मिट्टी की कमी को देखते हुए फिनिश मिट्टी राजकोट से मंगाई जाती है।
पांच पीढ़ियों से कर रहे काम
धारावी के करीब 12.5 एकड़ में कुम्भार वाड़ा है जहां पर करीब 1200 कुम्भार परिवारों के घर हैं। पांच पीढ़ियों से यहां पर मिट्टी के बर्तन बनाने का काम हो रहा है। मिट्टी के बर्तनों के पुश्तैनी कारोबार को संभाल रहे राजेश जेठवा ने बताया कि ब्रिटिश काल से धारावी में मिटटी के बर्तन बनाने का काम हो रहा है।
पहले मिटटी के बर्तनों की मांग अधिक हुआ करती थी लेकिन बदलते समय के साथ अब यह घाटे का धंधा हो गया है। हमें खुशी है कि अब नई पीढ़ी मिट्टी के दीयों के साथ मिटटी के बने बर्तनों को भी महत्व देने लगी है।
लोगों का स्वदेशी उत्पादकों के प्रति रुझान
इलेक्ट्रिक मर्चेंट एसोसिएसन के अध्यक्ष केतन ठक्कर ने कहा, “जनमानस में चीनी झालरों को लेकर काफी अवरनेस आया है लेकिन चायनीज झालर इंडियन झालर की कीमतों में करीब 50% सस्ता है। हम खुद इंडियन उत्पादों को ज्यादा महत्व देते हैं परन्तु चायनीज झालर सस्ता होने के कारण लोग उसे ही ख़रीददते हैं। वैसे लाइटिंग के करीब 50% उत्पाद चीन से ही आते हैं। कुछ व्यापारी चीन से उत्पाद ख़रीदते है तो कुछ चीन से अपनी ब्रांडिंग करवाकर लेते हैं।”
श्री जगदेश्वर काशी सेवा ट्रस्ट के महिला मोर्चा महाराष्ट्र की अध्यक्ष माया गौड़ ने कहा, “आधुनिकता की आंधी में हम अपनी पौराणिक परंपरा को छोड़कर दीपावली पर बिजली की लाइटिंग के साथ तेज ध्वनि वाले पटाखे फोड़ने शुरू कर दिये। शास्त्रों में मिट्टी के बने दीये को पांच तत्वों का प्रतीक माना गया है। दीपावली पर मिट्टी का दीया जला कर हमें अपने परंपरा का निर्वाह करना चाहिए।”
श्री ब्रज सखी क्लब की महामंत्री कल्पना अग्रवाल ने कहा, “चीनी झालर का उपयोग कर हम सब अपने देश में बेरोजगारी बढ़ा रहे हैं। चीनी लाइट का उपयोग करने से मिट्टी के दीये बनाने वाले बेरोजगार होते जा रहे हैं। घर को दीयों से सजाएं। दीया जलाने से वातावरण में मौजूद हानिकारक तत्व नष्ट होते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का भी संचार होता है।”