बालोद। कुत्ते और बिल्लियों की तरह एक परिवार अपनी गायों को भी बिस्तर पर सुलाता है। जी हां, ये सच है। छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के एक छोटे से गांव कोसागोंदी का एक किसान परिवार गोमाता की अनोखी सेवा को लेकर चर्चा में है। इस गो भक्त ने 24 गायों के लिए अपने घर में अलग कमरा बना रखा है। यहां उनके लिए स्पेशल बेड भी लगा हुआ है। साहू परिवार नौ वर्षों से अपने बच्चों की तरह गोमाता की सेवा करता है। सबके नाम भी रखे गए है। अपना नाम सुनते ही गाय और बछड़े दौड़े चले आते है।
बालोद जिले के गुरुर ब्लाक मुख्यालय से लगभग 12 किमी दूर ग्राम कोसागोंदी के किसान पन्नुराम साहू और उनकी पत्नी ललिता साहू गोमाता के भक्त हैं। उन्होंने अपने घर में एक अलग कमरा बनवा रखा है। यहां पर सुबह से लेकर शाम तक बच्चों की तरह गो माता की सेवा की जा रही है। कमरे में गो माता के लिए बिस्तर और कपड़े की भी व्यवस्था की गई है। उनके घर में सात गाय और 17 बछड़े यानी यानी कुल 24 गोवंश है। सभी के अलग अलग नाम भी रखे है। इन गायों को नाम से पुकारा जाता हैं और वे समझ भी जाते हैं। गो माताओं को ऐसी खास ट्रेनिंग दी गई है कि ये मूत्र का त्याग भी घर के बाहर रखे डिब्बे में करती है।
एक दुखद घटना से हुई थी शुरुआत
पन्नू राम साहू बताते हैं कि उनके पास 80 डिसमिल जमीन है, जिसमें वे धान की खेती करते है। पांच जनवरी 2013 को उनके बड़े बेटे रूपेंद्र कुमार की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। इसके बाद से उनकी पत्नी ललिता बीमार रहने लगी। उस दौरान पत्नी को सुबह-शाम दवाई के साथ एक-एक कप दूध की जरूरत थी। तब वे ससुराल से एक गाय ले आये। उसका दूध पीकर उनकी पत्नी स्वस्थ हो गई। फिर तो दोनों पति-पत्नी गो माता की सेवा में जुट गए। पन्नू का छोटा बेटा एवंत कुमार साहू और बहू वोमेश्वरी भी गोमाता की देखभाल करते है। वे आगे बताते हैं कि वे दूध-दही की बिक्री नहीं करते, जब गांव में कोई आयोजन होता है या किसी को जरूरत होती है तो वे निशुल्क दे देते हैं।
गोबर बाहर करें इसलिए दी ट्रेनिंग
पन्नुराम ने बताया कि गायों को ट्रेनिंग देने में काफी समय लगा। पहले वे कमरे में ही गोबर कर देती थी, लेकिन लगातार ट्रेनिंग के बाद अब गो माता समझ चुकी हैं कि गोबार कहां करना है। घर के एक कमरे में गायों के लिए बिस्तर की व्यवस्था है, गद्दी के ऊपर पालीथिन फिर उसके ऊपर चादर बिछाकर गायों को सुलाते हैं।
गाय बछड़ों की मौत से होता है दुख
ललिता साहू ने बताया कि उनके बड़े बेटे की मृत्यु के बाद से ही उनके पति ने गायों और इनके परिवार को अपना परिवार मान पूरे दिल से सेवा करनी शुरू कर दी। वे कहती हैं कि जब भी किसी बछड़े या गाय की मौत होती है, उन्हें बहुत दर्द होता है। ऐसा लगता है मानो परिवार के किसी सदस्य को खो दिया।
सुबह जलेबी, शाम को दाल चावल
बहू वोमेश्वरी साहू बताती है कि रोज सुबह गाय और बछड़े को जलेबी के साथ दाल-चावल खिलाते है और शाम को भी दाल चावल। घर में जो परिवार के लिए बनता है, वही गो माता के लिए बनता है। उन्हें कभी भी झूठन नहीं खिलाते। सभी को नाम से बुलाया जाता है, जैसे बुद्धिमान, रानी, शीला, सोनिया, माताराम, सीमा, रोशनी, सीता, चुनिया, मुनिया, दुनिया। वे बताती है कि सीमा बहुत शरारती और रानी बहुत सीधी है। वही सबसे बुजुर्ग में माताराम हैं।
ग्राम कोसागोंदी के पन्नू राम साहू ने कहा, मैं जो खाता हूं, वही गायों को खिलाता हूं। सभी गाय रोज सुबह एक किलो जलेबी खाती है। चोकर और कुटी भी खाती हैं। इनके सोने के लिए गद्दे की व्यवस्था है। घर के अलग कमरे में बिस्तर बिछाया जाता है।
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