चैंक बाउंस के मामलों में क्या करे क्या न करे : जाने Adv . S . K . Ghosh की जुबानी
चैंक बाउंस के मामलों में एैसी गलती कभी नहीं करें, वरना पछताना पड़ेगा! - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
चेक अनादरन या चेक बाउंस के आरोपी के पास दस्तावेज है तो ही बचाव संभव हैं, अन्यथा दोषसिद्धि तय है।
अवैध साहूकारी का कारोबार एक छोटे गांव, शहर से लेकर महानगर तक चलता हैं। बैंक, फायनेंस कंपनी, और कोआपरेटिव सोसाईटी हस्ताक्षर युक्त चेक लेकर ऋण देते हैं, ऋण की राशि पूरी कभी नहीं देते हैं,ऋण की कुछ राशि पहले ही काट लेते हैं या कर्ज की कुछ राशि की एफडी करके रख लेते हैं लेकिन मासिक किश्तों का निर्धारण संपूर्ण ऋण राशि पर करते हैं। कर्जदार से मासिक ईएमआई अदा करने में चूक होती है या, तीन लगातार किश्तें अदा नहीं करने पर ऋण खाता एनपीए हो जाता हैं। ऋण देने वाली वित्तीय संस्थाए आवेदक/ऋणी द्वारा ऋण राशि की सुरक्षा बतौर दिए गए कोरे चेक का दुरुपयोग कर उसमें नाम, रकम और दिनांक लिखकर बैंक में भुगतान के लिए पेश कर देती है जो कि बांउस हो जाता है। वकील का मांग सूचना पत्र आता है, जिसमें चेक राशि की मांग की जाती हैं, ज्यादातर कर्जदार जवाब नहीं देते हैं, जो कि आगे जाकर घातक हो जाता है। इसके बाद अदालत में वकील मुकदमा पेश कर देता है। चेक बाउंस मामले में वकील का चयन महत्वपूर्ण हैं, अन्य सिविल या क्रिमिनल मामलों की तरह चेक बांउस मामलों में पैरवी नहीं की जाती है। चेक बाउंस का मामला दस्तावेज आधारित है जिसे टेक्नीकल लाॅ के आधार पर लड़ा जाता है। इसलिए चेक बांउस के मामलों में आरोपी की ओर से पैरवी करने में विशेषज्ञ वकील की सेवाएं लेनी चाहिए। चेक बांउस का विशेषज्ञ अधिवक्ता ही आपको बता सकता है कि आपके लिए उचित बचाव क्या हैं ? अक्सर यह देखने में आता है कि परिवादी के लिए पैरवी करने वाले वकील को आरोपी आनन-फानन में नियुक्त कर देता है, वह जमानत करवाता है ओर चेक की राशि जमा करने के लिए आरोपी को सलाह देता हैं। योग्य वकील नहीं मिल पाने की कीमत आरोपी चुकाता है। अंततः दोषसिद्धि हो जाती हैं, जेल जाना पड़ता हैं और यहां तक कि चेक राशि की दुगुनी राशि अदा करनी पड़ती है। इसलिए वकील का चयन सावधानी से करें,।
अदालत में चेक पर नाम, रकम, और दिनांक किसने लिखी है ? यह सवाल कम मायने रखता हैं, चेक पर हस्ताक्षर की स्वीकृति ज्यादा मायने रखती है। अदालत यह मानकर चलेगी कि चेक पर अंकित रकम की देनदारी है, इसलिए हस्ताक्षर करके चेक जारी किया गया हैं। यही उपधारणा ली जाती है। इसके बाद आरोपी का बचाव क्या हो सकता है ? आरोपी कौन से दस्तावेज पेश कर सकता हैं ? इसका जवाब है कि आरोपी यह साबित कर सकता है कि विवादित चेक बहुत पुराना है, इसका बाद में दुरूपयोग किया गया है, तो इस तथ्य को साबित करने के लिए भी दस्तावेजी सबूत आवश्यक है। आरोपी यह साबित कर सकता है कि चैक पर ज्यादा रकम लिखी गई है वह रकम के एक भाग की अदायगी कर चुका है तो इसके लिए भी दस्तावेजी सबूत आवश्यक हैं। आरोपी यह साबित कर सकता हैं कि रकम लौटा दी गई है तो इन सभी आधारों के लिए भी सबूत आवश्यक है। कर्ज देने वाले की आर्थिक हैसियत बेहद कमजोर है, वह इतनी बड़ी रकम देने में सक्षम नहीं है, आरोपी यह भी साबित कर सकता है। चेक गुमशुदा है जिसकी गुमशुदगी बैंक एवं पुलिस में दर्ज हैं तो इसके लिए भी दस्तावेज आवश्यक है। यदि आरोपी के पास बचाव उपलब्ध हैं तो वह मांग सूचना पत्र का जवाब अवश्य ही देगा, अन्यथा नहीं देगा। इसलिए चेक बांउस के मामलों में अभ्यस्थ अधिवक्ता से समस्त सबूतों व साक्ष्यों पर चर्चा एवं विचार करके ही जवाब देना चाहिए। मांग सूचना पत्र का जवाब नहीं देने से नुक्सान होता है लेकिन गलत जवाब देने से और भी नुक्सान ज्यादा होता है। अक्सर नोटिस का जबाब देते समय आरोपी जाने-अनजाने में लेन-देन की स्वीकृति कर बैठता है, जिससे बचना चाहिए। चेक का जारी करना उसका निष्पादन नहीं कहलाता है।
साहूकारी कानून में ब्याज पर उधार लेने पर लाइसेंस की आवश्यकता होती है। यदि नोटिस एवं परिवाद में ब्याज की भी मांग की गई हो तो इसके जबाब में आरोपी को यह कहना चाहिए कि मांग सूचना पत्र में वणिँत कथा से साहूकारी कानून का अपराध गठित हो रहा है।
फायनेंस कंपनी, कोआपरेटिव सोसाईटी और बैंक से ऋण लिया गया हैं तो ऋण लेना कोई अपराध नहीं हैं, इसलिए डरना नहीं चाहिए। चेक बांउस का कानून ऋण वसूली का कानून नहीं हैं। परंतु न्यायालय विचारण के समय ऋण वसूली प्राधिकरण का कार्य करने लग जाती है। बैंक की किश्तों को अदा करने में अक्षम व्यक्ति एक बड़ी रकम का चेक कैसे जारी कर सकता है ? यह प्रश्न उठता हैं और उठाना चाहिए भी। उपभोक्ता संरक्षण कानून 2019 का सहारा लेना चाहिए। नए कानून में अनुचित व्यापार प्रथा को जोड़ा गया हैं, इसका लाभ मिलता है। चेक बाउंस के प्रकरण में अधिकतर परिवादी नहीं जीतता है, वरन आरोपी गलत बचाव लेने के कारण हारता है।
"conviction is Law & acquittal is exception. "
फायनेंस कंपनी मोटर यान, ट्रेलर, आदि पर फायनेंस करती है, मासिक किश्तों की अदायगी में चूक होने पर मोटर यान जप्त करके लेकर चली जाती है, नीलाम कर देती है, बाद में चैक बांउस का मामला अदालत में चलाती हैं तो उपभोक्ता संरक्षण कानून 2019 की सहायता ली जा सकती है। फायनेंस कंपनी को वाहन लौटाना पड़ सकता हैं और ग्राहक को मुआवजा भी देना पड़ सकता है तो इसके लिए भी दस्तावेज आरोपी के पास होना चाहिए। चेक बांउस मामले में आरोपी साबित कर सकता हैं कि चेक तो पुराना हैं तो इसके लिए भी दस्तावेज चाहिए।
मल्टी स्टेट कोआपरेटिव सोसाईटी या क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाईटी चेक के जरिए ऋण वसूली करती है जबकि इनके लिए अलग से वसूली के लिए अदालत/फोरम गठित हैं और कानून बना हुआ हैं। कोआपरेटिव सोसाईटी के मामलों में देखने में आता हैं कि जो ऋण राशि 24 मासिक किश्तो में अदा करना हैं, किश्त अदायगी में चूक होने पर अंतिम किश्त अदायगी दिनांक के पूर्व ही संपूर्ण ऋण राशि चेक पर लिखकर पेश कर देती है और वसूल कर लेती है जो कि विधि विरुद्ध व गलत है। चेक बाउंस मामलों में सुनवाई के दौरान संपूर्ण दस्तावेज कोआपरेटिव सोसाईटी से प्राप्त करके उपभोक्ता संरक्षण कानून 2019 का सहारा लिया जा सकता है।
चेक बांउस कानून में बचाव में आरोपी को दस्तावेज पेश करना आवश्यक है। इस बात की संभावना हो सकती है कि दस्तावेज खुद परिवादी के पास, बैंक, फायनेंस कंपनी, या कोआपरेटिव सोसाईटी के पास मौजूद हो, जिसमें आपका बचाव मौजूद हो। चैक बाउंस के मामलों में जमानत ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हैं बल्कि दोषमुक्ति ज्यादा महत्वपूर्ण है इसलिए विचार दोषमुक्ति पर ही करना चाहिए, जो अधिवक्ता दोषमुक्ति की संभावना देखता है, वही आपके लिए उचित अधिवक्ता है। समझौता करना युक्तिसंगत नहीं है। यह अंतिम विकल्प है। अक्सर जमानत करवाने के बाद अधिवक्ता मुकदमा छोड़ देते हैं या फिर जमानत के बाद चैक राशि अदा करने के लिए कहते हैं। बार बार अधिवक्ता बदलने से आरोपी का बचाव खंडित हो जाता हैं, टूट जाता है।
चेक बांउस का मुकदमा लड़ना आरोपी के लिए बेहद महंगा होता है। आरोपी हस्ताक्षर से इंकार करता हैं या चैक पर नाम, रकम दिनांक लिखने से इंकार करता हैं तो हस्तलेख विशेषज्ञ से परीक्षण करवाना महंगा पड़ता हैं। बैंक अधिकारी या पुलिस अधिकारी को अदालत में तलब किया जाता है तो आरोपी को एक दिन का वेतन जमा करना पड़ता हैं।
विचारण न्यायालय में अंतिम बहस लिखित में आरोपी को देना पड़ता है साथ में भारत की सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले बहस के समर्थन में पेश करना पड़ता है। चैंक बांउस में आरोपी की ओर से पैरवी करने में सक्षम अधिवक्ता ही सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसलो को लिखते हुए बहस तैयार कर सकता है। इसके लिए एक विशिष्ट लेखन शैली एवं विधिक शब्दावली का ज्ञान आवश्यक हैं और श्रमसाध्य कार्य हैं। आरोपी को स्वयं से एक सवाल पूछना चाहिए कि उसके लिए इतनी मेहनत करेगा कौन ?
चेक बाउंस का मामला श्रमसाध्य है, बहुत परिश्रम का काम है।
बैंक, फायनेंस कंपनी या कोआपरेटिव सोसाईटी का कोई भी नोटिस आता है तो उसका जवाब देना आवश्यक होता हैं। कर्जदार को जवाब देना है और नोटिस लेने से इंकार कभी नहीं करना चाहिए। अन्यथा कर्जदार को भविष्य में बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। यदि चेक अनादरन के मामले के साथ साथ माध्यस्तम एवं सुलह अधिनियम के तहत भी execution का मामला चलता है तो भी इसके लिए बहुत बचाव के रास्ते हैं, इसे सक्षम न्यायालय व आर्बिट्रेटर के समक्ष पारित अवार्ड को यथासमय चुनौती दी जा सकती है।
Adv . S . K . Ghosh ,
RAIGARH
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